Sambhal Vivad Up : शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण में रुकावट, एएसआई ने किया बड़ा खुलासा
संभल विवाद: शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण में रुकावट, एएसआई ने किया बड़ा खुलासा
संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ASI ने हाल ही में अदालत में एक हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें कई महत्वपूर्ण दावे किए गए हैं। एएसआई ने बताया कि 1920 में इस मस्जिद को केंद्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था और तब से इसका संरक्षण और रखरखाव उनकी जिम्मेदारी में है। लेकिन, मस्जिद प्रबंधन समिति द्वारा लंबे समय से एएसआई की टीम को मस्जिद के अंदर प्रवेश करने से रोका जा रहा है।
1920 में घोषित संरक्षित स्मारक
शाही जामा मस्जिद, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की इमारत है, को 1920 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा केंद्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। इस फैसले के तहत, इमारत के किसी भी हिस्से में बदलाव या निर्माण कार्य बिना एएसआई की अनुमति के नहीं किया जा सकता। एएसआई का दावा है कि मस्जिद में समय-समय पर सर्वेक्षण और मरम्मत कार्य किए जाते रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी टीम को मस्जिद के अंदर जाने से रोक दिया गया है।
एएसआई का हलफनामा और मस्जिद में बदलाव का दावा
अदालत में दाखिल हलफनामे में एएसआई ने स्पष्ट किया है कि शाही जामा मस्जिद की संरचना में कई बार अवैध बदलाव किए गए हैं। उनका कहना है कि मस्जिद के भीतर और उसके आसपास किए गए ये बदलाव भारतीय पुरातत्व अधिनियम का उल्लंघन हैं। एएसआई ने अदालत को बताया कि मस्जिद के संरक्षण के लिए उनकी टीम ने कई बार निरीक्षण की कोशिश की, लेकिन उन्हें बार-बार रोक दिया गया।
मस्जिद प्रबंधन समिति पर आरोप
एएसआई ने अपने हलफनामे में मस्जिद प्रबंधन समिति पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि मस्जिद स्थल पर किए गए सर्वेक्षण कार्य में लगातार बाधा डाली गई। इससे न केवल इमारत के संरक्षण कार्य प्रभावित हुए हैं, बल्कि इससे मस्जिद की ऐतिहासिक प्रामाणिकता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
संरचना में बदलाव के दावे
एएसआई ने दावा किया है कि शाही जामा मस्जिद की मूल संरचना में बदलाव किए गए हैं। कुछ हिस्सों में मरम्मत और निर्माण कार्य बिना अनुमति के किए गए, जिससे स्मारक की ऐतिहासिकता को नुकसान पहुंचा है। इन बदलावों में नई दीवारों का निर्माण, इमारत की सतह पर प्लास्टर का परिवर्तन, और मूल डिजाइनों में छेड़छाड़ शामिल है।
मस्जिद कमेटी का पक्ष
दूसरी ओर, मस्जिद प्रबंधन समिति का दावा है कि मस्जिद एक धार्मिक स्थल है और वहां एएसआई की टीम को प्रवेश करने से रोकना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत आता है। उनका कहना है कि एएसआई को संरचना के नाम पर धार्मिक स्थलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
संभल विवाद का प्रभाव
इस विवाद ने संभल में तनावपूर्ण माहौल पैदा कर दिया है। स्थानीय समुदाय इस मुद्दे को लेकर बंटा हुआ है। कुछ लोग एएसआई के पक्ष में हैं और मानते हैं कि ऐतिहासिक संरचनाओं का संरक्षण आवश्यक है, जबकि अन्य का कहना है कि धार्मिक स्थलों में सरकारी हस्तक्षेप से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
अदालत का निर्णय महत्वपूर्ण
अभी यह मामला अदालत में विचाराधीन है, और न्यायालय का निर्णय इस विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभाएगा। यह निर्णय न केवल शाही जामा मस्जिद के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि देश में धार्मिक स्थलों के संरक्षण और प्रबंधन का संतुलन कैसे बनाए रखा जाए।शाही जामा मस्जिद पर विवाद दिखाता है कि ऐतिहासिक स्मारकों और धार्मिक स्थलों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाना कितना कठिन है। एएसआई का यह हलफनामा इस बात को रेखांकित करता है कि संरक्षित स्मारकों की देखभाल में पारदर्शिता और सहयोग की आवश्यकता है।
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