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कौन थे पिप्पलाद मुनि? जिनके स्मरण से सात जन्मों तक मनुष्यों को शनि की दशा नहीं लगती

एक पौराणिक कथा के अनुसार, पिप्पलाद मुनि के माता-पिता की मृत्यु तभी हो गई जब वे बालक थे. तीन साल की उम्र में वह पीपल के पेड़ के नीचे पीपल के पत्ते और फल खाकर बड़े हुए. एक बार उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई तो उन्होंने पूछा कि उनके माता-पिता की मृत्यु और उनके कष्ट का कारण क्या था. जिस पर नारदजी ने उन्हें बताया कि शनि ग्रह के कारण उन्हें जीवन में कठिनाइयों और माता-पिता से अलगाव का सामना करना पड़ा. ऋषि ब्रह्मा ने वरदान लेकर शनि को दंडित किया. शनि आकाश से गिरे. आज हम आपको उन्हीं पिप्पलाद मुनि की कहानी बताने जा रहे हैं जिनके स्मरण से माना जाता है कि शनि का सात जन्मों तक कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

भगवान शिव ने आकर ऋषि के क्रोध से भयभीत शनि की रक्षा की और पिप्पलाद के क्रोध को शांत किया. देवताओं की प्रार्थना से पिप्पलाद मुनि ने शनि को क्षमा कर दिया, लेकिन उन्होंने शनि से कहा कि अब से 16 वर्ष की आयु तक किसी भी बच्चे को शनि दोष का सामना नहीं करना पड़ेगा, शनि बच्चों पर बुरी नजर नहीं डालेंगे. पिप्पलाद मुनि की इस बात से शनिदेव सहमत हो गये. तभी से जन्म कुंडली से शनि दोष दूर करने के लिए पिप्पलाद महादेव की पूजा करने की परंपरा है.

पिप्पलाद महादेव के भक्तों पर शनि दोष का प्रभाव नहीं पड़ता. एक विश्वास है. इसके साथ ही ऋषि ने कहा कि पीपल के पेड़ ने मुझ अनाथ को आश्रय दिया है. इसलिए जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएगा उस पर शनि की महादशा का प्रभाव नहीं पड़ेगा. पिपला का अर्थ भी जानिए, ‘पिपला का फल खाकर जीने वाला’.इसी समय ब्रह्मा जी ने भी पिप्पलाद ऋषि को पूजनीय होने का आशीर्वाद दिया था. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन श्रद्धापूर्वक आपकी पूजा या स्मरण करेगा, उसे सात जन्मों तक शनिदेव की पीड़ा नहीं सहनी पड़ेगी. वह अपने पुत्र-पौत्रों के साथ समस्त सुख भोगेगा. शिवपुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस कथा को श्रद्धापूर्वक सुनता है उसे शनिदेव की पीड़ा भी नहीं सहनी पड़ती.

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